साइकोसोमैटिक सिंड्रोम के बारे में मिलकर जागरूकता फैलाएंगे दिल्ली-एनसीआर के प्रमुख डॉक्टर्स
साइकोसोमैटिक सिंड्रोम के बारे में मिलकर जागरूकता फैलाएंगे दिल्ली-एनसीआर के प्रमुख डॉक्टर्स
नई दिल्ली : आम लोगों और डॉक्टरों के बीच कुछ खास तरह के और नजरअंदाज कर दिए जाने वाले विकारों और वेक्टर जनित बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हाल ही में मेंटल रिसर्च सोसायटी के द्वारा जेन एक्स डाग्नोस्टिक्स के साथ मिलकर एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें 200 से ज्यादा डॉक्टरों ने हिस्सा लिया।
जेन एक्स डायग्नोस्टिक्स के पैथॉलजिस्ट प्रशांत नाग ने चर्चा की शुरुआत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि वेक्टर जनित बीमारियों से किस तरह निपटा जा सकता है। उन्होंने बताया, ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) कि सभी तरह की इन्फैक्शन वाली बीमारियों में 20 प्रतिशत से ज्यादा बीमारियां वेक्टर जनित होती हैं। देश की राजधानी दिल्ली में इस साल भी वेक्टर जनित बीमारियों जैसे स्वाइन फ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया आदि के मरीजों की तादाद 1000 से ज्यादा हो चुकी है। ऐसे में हमारा पूरा ध्यान इन बीमारियों को समय रहते पहचान कर इन्हें फैलने से रोकने पर होना चाहिए। आमतौर पर ये बीमारियां मच्छरों के काटने से होती हैं, लेकिन ये बेहद जानलेवा भी साबित होती हैं। इन बीमारियों की पहचान के लिए बड़ी तादाद में मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे में लैब टेस्ट की प्रक्रिया बहुत सुरक्षित, आसान और जल्दी होना चाहिए, ताकि मरीज को जल्द से जल्द जांच रिपोर्ट सौंपी जा सके और समय रहते उसका बेहतर इलाज हो सके।’
डब्लूएचओ के अनुसार, व्यापार और पर्यटन के साथ बढ़ते ग्लोबलाइजेशन और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों ने हाल के महीनों में इन बीमारियों को फैलाने में बेहद अहम भूमिका निभाई है। अकेले दिल्ली में पिछले एक महीने के दौरान स्वाइन फ्लू के मरीजों की तादाद में चार गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसके पीछे एक प्रमुख कारण मॉनसून की बारिश के बाद मौसम में हुआ बदलाव भी है।
डॉ. गौरव गुप्ता ने साइकोमैटिक सिंड्रोम और उसके नतीजों पर जोर देते हुए कहा, ‘इस प्रकार के विकार किसी व्यक्ति को शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से भी प्रभावित करते हैं और इस वजह से मरीज की हालत और गंभीर हो जाती है। उदाहरण के लिए तनाव या हाइपरटेंशन की वजह से सीने में दर्द हो सकता है, लेकिन जांच में किसी तरह की कोई शारीरिक बीमारी सामने नहीं आ पाती है। कुछ बीमारियां मेंटल फैक्टर्स के चलते और भी गंभीर रूप धारण कर लेती हैं, जैसे तनाव, एंग्जायटी और हाइपरटेंशन। ये सभी दिक्कतें किसी भी समय शारीरिक बीमारियों की गंभीरता को और ज्यादा बढ़ा सकती हैं। ऐसा नसों में उठने वाले उन संवेगों की क्रियाशीलता बढ़ने की वजह से होता है, जो दिमाग के द्वारा शरीर के विभिन्न हिस्सों को भेजे जाते हैं।’
ज्यादातर ऐसी भावनाएं, जिन्हें जाहिर नहीं किया जाता है, जैसे कि गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन या अकेलापन आदि शारीरिक बीमारियों से भी जुड़ीं होती हैं। साइकोमैटिक बीमारियां अचानक किसी तनावपूर्ण परिस्थिति, नकारात्म सोच और भावनाओं के आवेग की वजह से और ज्यादा तेजी से उभरकर सामने आती हैं। ये बीमारियां इन दिनों और ज्यादा कॉमन होती जा रहीं हैं। तनावपूर्ण माहौल में काम करने और जीने के कारण भारत (या किसी भी अन्य विकासशील देश) के करीब 80 प्रतिशत पेशेवर लोगों में इस तरह की बीमारियों के विकासित होने की संभावनाएं बनी रहती हैं। इनमें सबसे कॉमन उदाहरण के तौर पर पेप्टिक अल्सर, हाइपरटेंशन, हार्ट प्रॉब्लम, स्किन एलर्जी, पेट के विकार और श्वसन प्रणाली संबंधी कई अन्य बीमारियां शामिल हो सकती हैं।