राज्य

BARWANI…पिकअप-लोडिंग वाहन में यात्रा मजबूरी…समाजसेवी बीएल जैन ने की सड़क परिवहन निगम को शुरू करने की मांग

आजादी के 75 वर्ष बाद आवागमन के साधन उपलब्ध नहीं

हमारा मेट्रो बड़वानी

देश की आजादी के 75 वर्षो के बाद भी आवागमन के समुचित साधन हमारे प्रदेश में उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में एक आम यात्री की मजबूरी है कि जो भी बस या छोटे वाहन जैसे जीप, पिकअप वाहन एवं टै्रक्टर व लोडिंग वाहनों में बैठकर गंतव्य तक पहुंचना होता हैै। यातायात के साधन उपलब्ध नहीं होने से बसो में दोगुनी एवं 10 सीटर छोटे वाहनों एवं लोडिंग वाहनों में 30 से 40 यात्री भेड बकरियों की तरह बैठा कर एवं खड़े होकर ले जाया जाता है। ऐसी स्थिती मे प्रदेश मे पुन: राज्य परिवहन निगम प्रारंभ किया जाना चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ कर सलाहकार बीएल जैन ने इस मामले को लेकर प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री, मुख्य सचिव एवं प्रमुख सचिव परिवहन विभाग को पत्र प्रेषित कर उन्हें अवगत कराया है कि 9 मई 2023 को खरगोन जिले के डोंगर गांव के समीप बोराड नदी के पुल के नीचे निजी बस के गिर जाने से 25 से अधिक यात्रियों की मृत्यु हो गई और 39 यात्री गम्भीर रूप से घायल हुए। इस दिल दहलाने वाली घटना के पश्चात् शासन ने परम्परानुसार आरटीओ को निलंबित कर मजिस्ट्रियल जांच के आदेश देकर राज्य सरकार ने मृतकों को 4-4 लाख और प्रधानमंत्री द्वारा 2-2 लाख एवं घायलों को 50-50 हजार की सहायता राशि देने की घोषणा करके मामले की इतिश्री कर दी गई।

कब तक घडिय़ाली आंसू बहाएंगे?
जबकि कई दशकों से ऐसी घटनाएं हमारे प्रदेश में लगातार घटित हो रही है लेकिन घटनाओं के मुख्य कारणों को समझे बगैर केवल बस मालिक, चालक, परिचालक पर मुकदमें दर्ज करने एवं एकाध जिम्मेदार अधिकारी पर निलबंन की गाज गिरा देने और जांच के आदेश जारी कर घडिय़ाली आंसू बहा देने से समस्या का निदान तो नहीं हो रहा है। बल्कि अगली घटनाओं के इंतजार के लिए ऐसे हालात यथावत् बने हुए है। जैन ने पत्र मे लिखा है कि मप्र में सन् 1982 के पहले राज्य परिवहन निगम की सेवाएं आम जनता को मिलती थी। ये सेवाएं ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुुंचती थी, लेकिन प्रदेश की तात्कालिन सरकार ने राज्य परिवहन निगम को ही बंद कर निजी वाहनों को इस क्षेत्र में प्रवेश दे दिया।

सरकार घाटे में थी, तो निजी बसों को मुनाफा कैसा?
कारण बताया था कि परिवहन निगम घाटे मे संचालित हो रहा था, इसलिए इसे बंद किया जा रहा है। वस्तु स्थिती यह है कि शासन के कुप्रबंधन के कारण परिवहन निगम घाटे मे संचालित होता था। यदि इस क्षेत्र मे घाटा होता तो निजी वाहन चालक आज इसी व्यवसाय मे मुनाफे मे इसे कैसे संचालित कर रहे है। ऐसे हालातो मे शासन को परिवहन निगम बंद करने की बजाय उसके प्रबंधन को सुधारने की आवश्यकता थी। शासन की इस गलती का खामियाजा आज आम जनता भोग रही है। पत्र में जैन ने कहा कि वर्तमान मे हालात ये है कि निजी बस चालक ग्रामीण क्षेत्रों में बसे संचालित करने मे कम रूचि दर्शाते है। यही नहीं शहरी क्षेत्र के लिए चलने वाले बस चालकों में यात्री बैठाने की प्रतिस्पर्था के कारण बसों को अनियंत्रित गति से दौड़ाते है और निर्धारित सीटों से अधिक यात्री बैठा लेते है। यही नहीं जिम्मेदार विभाग के अधिकारियों से मिली भगत करके कई बस मालिक बगैर फिटनेस अथवा वांछित सुविधाओं के बगैर वाहन चलाते है। आम शिकायत यह भी है कि निजी बस चालक कई बार यात्रियों से मनमाना किराया भी वसूल कर लेते है, फिर भी यात्री को मजबूरी मे यात्रा करना होती है। प्रदेश में चालको के लिए लायसेंस जारी करने की ऐसी लचीली प्रक्रिया है कि अयोग्य ड्रायवर भी लायसेंस लेने में कामयाब हो जाता है। इन्हीं कारणों से आये दिन दुर्घटनाएं घटित होती है। जिसमें जनहानि एवं गंभीर रूप से घायलों को जीवन पर्यन्त दुख उठाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

पड़ोसी प्रदेशों में परिवहन सेवाएं सुचारू, यहां बंद क्यों?
उन्होंने बताया कि किसी भी लोकतांत्रिक सरकार की यह जवाबदारी है कि वह आम जनता को स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली, सुरक्षा और परिवहन जैसे आवागमन के साधनों की समुचित व्यवस्था करवाए, यहीं नहीं आम जनता को ये सुविधाएं पाने का मौलिक अधिकार भी उसे संविधान मे प्रदत्त है, लेकिन हमारे प्रदेश में स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा एवं परिवहन जैसे मामलों में पर्याप्त सुविधाएं आज भी उपलब्ध नहीं है। प्रदेश के बजट का 82 प्रतिशत खर्च वेतन भत्ता एवं पेंशन और सरकार द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज चुकाने पर खर्च हो जाता है। ऐसे हालातों मे मुलभुत सुविधाओं के लिए शासन के पास मात्र 18 प्रतिशत राशि शेष रहती है। इस कारण वित्तिय संसाधनों की कमी हमेशा जनसुविधाओं में आड़े आती है। प्रदेश के पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान सहित अनेक प्रदेशों में राज्य परिवहन निगम की व्यवस्था बरकरार होने से वहां की आम जनता को आवागमन की सुविधाएं प्राप्त हो रही है। फिर मप्र शासन इस मामले मे पुनर्विचार क्यों नहीं कर सकता है?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button